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नीमच/मनासा गांधीसागर डूब क्षेत्र के कुंडला-खानखेड़ी इलाके में गुरुवार की सुबह खनिज विभाग ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 5 ट्रैक्टर-ट्रॉली को रेत से भरे हुए पकड़ा। यह कार्रवाई जिला कलेक्टर हिमांशु चंद्रा और एसडीएम पवन बारिया के निर्देश पर सहायक खनिज अधिकारी गजेंद्र डाबर की अगुवाई में की गई। परंतु कार्रवाई के पीछे की कहानी रेत से कहीं अधिक गहरी और गंदी दिखती है। एक सोशल मीडिया पोस्ट से हिल गया सिस्टम! स्थानीय ग्रामीणों द्वारा लगातार शिकायतों के बावजूद महीनों से प्रशासन निष्क्रिय बना रहा। 7 मार्च को लिखित शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार जब एक सोशल मीडिया ग्रुप में इस पूरे रैकेट को उजागर किया गया, तब जाकर जिला प्रशासन हरकत में आया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। खबर लीक या मिलीभगत? फाइटर समय से पहले गायब! खनिज विभाग की टीम सुबह 6 बजे मौके पर पहुंची, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि रेत खनन में लगे फाइटर (हैवी मशीनें) पहले ही वहां से गायब हो चुके थे। क्या विभाग की योजना की जानकारी माफियाओं तक पहले ही पहुंच गई थी? या फिर सिस्टम के भीतर से ही जानकारी लीक की गई? यह एक गंभीर सवाल है। सिर्फ ट्रैक्टर पकड़ने की नौटंकी? पूरी कार्रवाई में सिर्फ 5 ट्रैक्टर ही पकड़े गए, जबकि प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार वहां बड़े पैमाने पर खनन चल रहा था। सवाल यह भी है कि जिन ट्रैक्टरों को पकड़ा गया, वे किसके आदेश पर रेत ला रहे थे? उनके मालिक कौन हैं? क्या उनके खिलाफ FIR दर्ज होगी या खानापूर्ति कर छोड़ दिए जाएंगे? मनासा प्रशासन ने नहीं दिया सहयोग – क्यों सूत्रों के अनुसार खनिज विभाग ने मनासा प्रशासन से सहयोग की मांग की थी, लेकिन सहयोग नहीं मिला। क्यों? क्या वाकई में सिस्टम का एक हिस्सा रेत माफियाओं के साथ खड़ा है? जब जिम्मेदार ही आंख मूंद लें, तो फिर ऐसे अवैध कारोबार को कौन रोकेगा? एक्शन के बाद भी एक्शन का अभाव! यह पहली बार नहीं है जब इस क्षेत्र में कार्रवाई के बाद फिर से अवैध खनन शुरू हो गया हो। इससे पहले जिन रैंपों को नष्ट किया गया था, वे फिर से बना लिए गए और खनन चालू हो गया। ऐसा प्रतीत होता है कि खनिज विभाग की कार्रवाई महज दिखावा है और असली खेल कहीं और चल रहा है। अब सवाल जनता का: - प्रशासन कब तक आंखें मूंदे बैठेगा? -जिन मशीनों को माफिया हटाकर ले गए, उनका हिसाब कौन देगा? -क्या खनिज विभाग की योजना माफियाओं तक पहले ही पहुंचाई गई? - आखिर यह "रेट का खेल" कब रुकेगा? जिले में रेत माफिया इस समय जिले के सबसे बड़े संगठित अपराध तंत्र के रूप में उभर चुका है, जो केवल नदी से रेत ही नहीं निकाल रहा, बल्कि सिस्टम की साख को भी लगातार खोखला कर रहा है। यदि प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो "नदी बचाओ" नहीं, अब "सिस्टम बचाओ" की जरूरत है। |
नीमच/मनासा गांधीसागर डूब क्षेत्र के कुंडला-खानखेड़ी इलाके में गुरुवार की सुबह खनिज विभाग ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 5 ट्रैक्टर-ट्रॉली को रेत से भरे हुए पकड़ा। यह कार्रवाई जिला कलेक्टर हिमांशु चंद्रा और एसडीएम पवन बारिया के निर्देश पर सहायक खनिज अधिकारी गजेंद्र डाबर की अगुवाई में की गई। परंतु कार्रवाई के पीछे की कहानी रेत से कहीं अधिक गहरी और गंदी दिखती है।
एक सोशल मीडिया पोस्ट से हिल गया सिस्टम!
स्थानीय ग्रामीणों द्वारा लगातार शिकायतों के बावजूद महीनों से प्रशासन निष्क्रिय बना रहा। 7 मार्च को लिखित शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार जब एक सोशल मीडिया ग्रुप में इस पूरे रैकेट को उजागर किया गया, तब जाकर जिला प्रशासन हरकत में आया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
खबर लीक या मिलीभगत? फाइटर समय से पहले गायब!
खनिज विभाग की टीम सुबह 6 बजे मौके पर पहुंची, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि रेत खनन में लगे फाइटर (हैवी मशीनें) पहले ही वहां से गायब हो चुके थे। क्या विभाग की योजना की जानकारी माफियाओं तक पहले ही पहुंच गई थी? या फिर सिस्टम के भीतर से ही जानकारी लीक की गई? यह एक गंभीर सवाल है।
सिर्फ ट्रैक्टर पकड़ने की नौटंकी?
पूरी कार्रवाई में सिर्फ 5 ट्रैक्टर ही पकड़े गए, जबकि प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार वहां बड़े पैमाने पर खनन चल रहा था। सवाल यह भी है कि जिन ट्रैक्टरों को पकड़ा गया, वे किसके आदेश पर रेत ला रहे थे? उनके मालिक कौन हैं? क्या उनके खिलाफ FIR दर्ज होगी या खानापूर्ति कर छोड़ दिए जाएंगे?
मनासा प्रशासन ने नहीं दिया सहयोग – क्यों
सूत्रों के अनुसार खनिज विभाग ने मनासा प्रशासन से सहयोग की मांग की थी, लेकिन सहयोग नहीं मिला। क्यों? क्या वाकई में सिस्टम का एक हिस्सा रेत माफियाओं के साथ खड़ा है? जब जिम्मेदार ही आंख मूंद लें, तो फिर ऐसे अवैध कारोबार को कौन रोकेगा?
एक्शन के बाद भी एक्शन का अभाव!
यह पहली बार नहीं है जब इस क्षेत्र में कार्रवाई के बाद फिर से अवैध खनन शुरू हो गया हो। इससे पहले जिन रैंपों को नष्ट किया गया था, वे फिर से बना लिए गए और खनन चालू हो गया। ऐसा प्रतीत होता है कि खनिज विभाग की कार्रवाई महज दिखावा है और असली खेल कहीं और चल रहा है।
अब सवाल जनता का:
- प्रशासन कब तक आंखें मूंदे बैठेगा?
-जिन मशीनों को माफिया हटाकर ले गए, उनका हिसाब कौन देगा?
-क्या खनिज विभाग की योजना माफियाओं तक पहले ही पहुंचाई गई?
- आखिर यह "रेट का खेल" कब रुकेगा?
जिले में रेत माफिया इस समय जिले के सबसे बड़े संगठित अपराध तंत्र के रूप में उभर चुका है, जो केवल नदी से रेत ही नहीं निकाल रहा, बल्कि सिस्टम की साख को भी लगातार खोखला कर रहा है। यदि प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो "नदी बचाओ" नहीं, अब "सिस्टम बचाओ" की जरूरत है।
NDA | INDIA | OTHERS |
293 | 234 | 16 |
NDA | INDIA | OTHERS |
265-305 | 200 -240 | 15-30 |